गेमिंग की लत पर कैसे पा सकते हैं कंट्रोल? IIT दिल्ली और एम्स ने मिलकर रिसर्च में निकाला समाधान
गेमिंग की लत पर कैसे पा सकते हैं कंट्रोल? IIT दिल्ली और एम्स ने मिलकर रिसर्च में निकाला समाधान
गेमिंग की लत पर कैसे पा सकते हैं कंट्रोल। इस पर IIT दिल्ली और एम्स ने मिलकर रिसर्च की है। इस रिसर्च में निष्कर्ष निकाला है। इसके अनुसार समयसीमा और आत्मनियंत्रण गेमिंग की लत घटा सकते हैं। आईआईटी दिल्ली और एम्स के साझा रिसर्च में यह निष्कर्ष निकला है। विशेषज्ञों ने कहा है कि गेमिंग कंपनियों से और डाटा की जरूरत है।
गेमिंग की लत पर कैसे पा सकते हैं कंट्रोल? IIT दिल्ली और एम्स ने मिलकर रिसर्च में निकाला समाधान।
गेमिंग की लत पर कैसे पा सकते हैं कंट्रोल। इस पर IIT दिल्ली और एम्स ने मिलकर रिसर्च की है। इस रिसर्च में निष्कर्ष निकाला है। इसके अनुसार समयसीमा और आत्मनियंत्रण गेमिंग की लत घटा सकते हैं। आईआईटी दिल्ली और एम्स के साझा रिसर्च में यह निष्कर्ष निकला है। विशेषज्ञों ने कहा है कि गेमिंग कंपनियों से और डाटा की जरूरत है।

समयसीमा और आत्मनियंत्रण का तरीका ऑनलाइन गेमिंग की लत का प्रभाव कम करने में एक हद तक सहायक हो सकता है। आईआईटी दिल्ली और एम्स के एक साझा अध्ययन में यह निष्कर्ष व्यक्त किया गया है और इसके साथ ही इस पहलू को और अधिक स्पष्ट रूप से प्रमाणित करने के लिए व्यापक शोध की जरूरत रेखांकित की गई है।
आईआईटी दिल्ली के एआई विशेषज्ञ तपन के. गांधी और एम्स के बिहेवियरल हेल्फ एक्सपर्ट यतन पाल सिंह बलहारा ने मंगलवार को इस शोध के नतीजों की जानकारी देते हुए कहा कि उन्होंने ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन से उनके प्लेटफार्मों से जुड़कर इस विषय पर विस्तृत अध्ययन करने की अनुमति मांगी है, जिससे ऑनलाइन और रियलटाइम मनी गेमिंग की लत के शिकार लोगों को इससे बचाने के कुछ और रास्ते तलाशे जा सकें।
बच्चों और किशोरों पर ऑनलाइन गेमिंग का ज्यादा असरयतन पाल ने कहा कि पिछले दो-तीन साल में आनलाइन गेमिंग में फंसकर पैसा और समय गंवाने के साथ ही अपनी मानसिक-मनोवैज्ञानिक स्थिति खराब करने वाले लोगों की संख्या बहुत बढ़ी है। इनमें बच्चे और किशोर भी शामिल हैं।
सरकार ने टूल के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कहा
आईआईटी दिल्ली और एम्स के अध्ययन को अपनी तरह की पहली स्टडी बताया जा रहा है। तपन के. गांधी ने कहा कि हम ऑनलाइन गेमिंग के दूसरे पहलुओं का अध्ययन कर रहे थे, जब हमने टाइम लिमिट और वालेंटरी सेल्फ एक्स्लूजन (वीएसए) यानी खुद ही कुछ अवधि के लिए खेल से अलग होने के टूल के प्रभाव का अध्ययन करने का फैसला किया। ऑनलाइन गेमिंग वाली कंपनियां अपने प्लेटफार्म में ये टूल उपलब्ध कराती हैं और इसे स्वनियमन मान लिया गया है।
8300 भारतीय गेमरों पर किया गया अध्ययनतपन गांधी के अनुसार, 8300 भारतीय गेमरों पर किए गए इस अध्ययन में उनकी टाइम लिमिट और वीएसई के साथ प्रतिदिन जमा किए जाने वाले धन, खेलों की संख्या, कुल पैसे, जीत और हार का विश्लेषण किया गया। यह सामने आया कि दोनों टूल की मदद से गेम खेलने के समय और उनके खर्च में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। गेमिंग व्यवहार में सर्वाधिक जोखिम वाले खिलाड़ियों में सबसे अधिक बदलाव देखने को मिला।
डाटा के साथ काम करने पर मिलता है सार्थक समाधान
तपन के. गांधी ने कहा कि यह छोटे साइज का अध्ययन है, लेकिन अगर हमें गेमिंग कंपनियों के डाटा के साथ काम करने को मिलता है तो एक सार्थक समाधान प्रस्तुत किया जा सकता है। नीति-निर्धारकों को ऑनलाइन गेमिंग, खासकर जिनमें पैसा भी शामिल है, पर नियंत्रण और नियमन के नए तौर-तरीके तय किए जा सकते हैं।
20% इंटरनेट यूजर्स को लग चुकी है लतएम्स के यतन पाल सिंह के अनुसार, ऑनलाइन गेमिंग की लत के शिकार लोगों की संख्या के लिए कोई आकलन अभी नहीं है, लेकिन यह तथ्य है कि इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 20 प्रतिशत लोग इसके लती हो चुके हैं।
ऑनलाइन गेमिंग पर बनेगा सेंटर ऑफ एक्सीलेंसएआई के साथ ही ब्रेन मैपिंग के एक्सपर्ट तपन गांधी ने बताया कि आईआईटी दिल्ली में ऑनलाइन गेमिंग पर केंद्रित एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की तैयारी चल रही है। यह अपनी तरह का पहला सेंटर होगा, जो केवल गेमिंग और उसके प्रभाव-दुष्प्रभाव के अध्ययन पर केंद्रित होगा। इसके लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है।
आईआईटी दिल्ली के एआई विशेषज्ञ तपन के. गांधी और एम्स के बिहेवियरल हेल्फ एक्सपर्ट यतन पाल सिंह बलहारा ने मंगलवार को इस शोध के नतीजों की जानकारी देते हुए कहा कि उन्होंने ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन से उनके प्लेटफार्मों से जुड़कर इस विषय पर विस्तृत अध्ययन करने की अनुमति मांगी है, जिससे ऑनलाइन और रियलटाइम मनी गेमिंग की लत के शिकार लोगों को इससे बचाने के कुछ और रास्ते तलाशे जा सकें।
बच्चों और किशोरों पर ऑनलाइन गेमिंग का ज्यादा असरयतन पाल ने कहा कि पिछले दो-तीन साल में आनलाइन गेमिंग में फंसकर पैसा और समय गंवाने के साथ ही अपनी मानसिक-मनोवैज्ञानिक स्थिति खराब करने वाले लोगों की संख्या बहुत बढ़ी है। इनमें बच्चे और किशोर भी शामिल हैं।
सरकार ने टूल के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कहा
आईआईटी दिल्ली और एम्स के अध्ययन को अपनी तरह की पहली स्टडी बताया जा रहा है। तपन के. गांधी ने कहा कि हम ऑनलाइन गेमिंग के दूसरे पहलुओं का अध्ययन कर रहे थे, जब हमने टाइम लिमिट और वालेंटरी सेल्फ एक्स्लूजन (वीएसए) यानी खुद ही कुछ अवधि के लिए खेल से अलग होने के टूल के प्रभाव का अध्ययन करने का फैसला किया। ऑनलाइन गेमिंग वाली कंपनियां अपने प्लेटफार्म में ये टूल उपलब्ध कराती हैं और इसे स्वनियमन मान लिया गया है।
8300 भारतीय गेमरों पर किया गया अध्ययनतपन गांधी के अनुसार, 8300 भारतीय गेमरों पर किए गए इस अध्ययन में उनकी टाइम लिमिट और वीएसई के साथ प्रतिदिन जमा किए जाने वाले धन, खेलों की संख्या, कुल पैसे, जीत और हार का विश्लेषण किया गया। यह सामने आया कि दोनों टूल की मदद से गेम खेलने के समय और उनके खर्च में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। गेमिंग व्यवहार में सर्वाधिक जोखिम वाले खिलाड़ियों में सबसे अधिक बदलाव देखने को मिला।
डाटा के साथ काम करने पर मिलता है सार्थक समाधान
तपन के. गांधी ने कहा कि यह छोटे साइज का अध्ययन है, लेकिन अगर हमें गेमिंग कंपनियों के डाटा के साथ काम करने को मिलता है तो एक सार्थक समाधान प्रस्तुत किया जा सकता है। नीति-निर्धारकों को ऑनलाइन गेमिंग, खासकर जिनमें पैसा भी शामिल है, पर नियंत्रण और नियमन के नए तौर-तरीके तय किए जा सकते हैं।
20% इंटरनेट यूजर्स को लग चुकी है लतएम्स के यतन पाल सिंह के अनुसार, ऑनलाइन गेमिंग की लत के शिकार लोगों की संख्या के लिए कोई आकलन अभी नहीं है, लेकिन यह तथ्य है कि इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 20 प्रतिशत लोग इसके लती हो चुके हैं।
ऑनलाइन गेमिंग पर बनेगा सेंटर ऑफ एक्सीलेंसएआई के साथ ही ब्रेन मैपिंग के एक्सपर्ट तपन गांधी ने बताया कि आईआईटी दिल्ली में ऑनलाइन गेमिंग पर केंद्रित एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की तैयारी चल रही है। यह अपनी तरह का पहला सेंटर होगा, जो केवल गेमिंग और उसके प्रभाव-दुष्प्रभाव के अध्ययन पर केंद्रित होगा। इसके लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है।
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